Last modified on 6 मई 2011, at 21:52

गोरख बाणी / गोरखनाथ

                नाथ बोले अमृत बाणी
                  वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी ।
गाडी पडरवा बांधिले शूंटा, चले दमामा बाजिलै ऊंटा ।
कऊवा की डाली पीपल बासे, मूसा कै सबद बिलइया नासे ।
चलै बटावा थाकी बाट, सोवै डूकरिया ठोरे षाट ।
ढूकिले कूकर भूकिले चोर, काढै धणी पुकारे ढोर ।
उजड़ षेडा नगर मझारी, तलि गागर ऊपर पनिहारी ।
मगरी परि चूल्हा धून्धाई, पोवणहारा कों रोटी खाई ।
कामिनि जलै अंगीठी तापै, विच बैसंदर थरहर काँपे ।
एक जु रढीया रढ़ती आई, बहू बिवाई सासू जाई ।
नगरी को पाणी कूई आवै, उलटी चरचा गोरष गावै ।।