Last modified on 7 मई 2011, at 14:39

छिन्न-पंख / उषा उपाध्याय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:39, 7 मई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जानती हूँ
न्याय की देवी की आँखो पर बँधी पट्टी
कभी भी खुलने वाली नहीं है,

तराजू के दोनों पलड़े
कभी भी संतुलित होंगे नहीं
और फिर भी
कटे हुई पंख के मूल में बचे हुए
एकाध पिच्छ के सहारे
 
कौनसी आस लिए मैं
कोशिश कर रही हूँ
अनंत अंधकार से भरे
इस महासागर को पार करने की!?

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा