आँख से मोती गिरा तो क्या हुआ, पूछो नहीं
वेदना की बाढ़ में क्या-क्या गया, पूछो नहीं ।
आटे जैसा बन हवा में इस कदर उड़ता रहा,
आफ़त के दो पत्थरों ने क्या-क्या पीसा, पूछो नहीं ।
बंद रखने मुठ्ठी को क्या कोशिशें कीं रात-दिन,
यातना के हिम में क्या-क्या गला, पूछो नहीं ।
पता नहीं था दुख और पीपल के साम्य का,
छत और छाती चीर कर क्या-क्या उगा, पूछो नहीं ।
कहाँ पता था कि यह कोई चिनगारी है,
लो, समय के हाथ से क्या-क्या जला, पूछो नहीं ।