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नामविश्वास/ तुलसीदास/ पृष्ठ 7

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नामविश्वास-7

(77)

जापकी न तप-खपु कियो, न तमाइ जोग,
जाग न बिहाग ,त्याग, तीरथ न तनको।

भाई को भरोसो न खरो-सो बैरू बैरीहू सों,
बलु अपनो न , हितू जननी न जनको।।

 लोकको न डरू, परलोकको न सोचु ,
 देव-सेवा न सहाय , गर्बु धामको न धनको।

 रामही के नामतें जो होई सोई नीको लागै,
ऐसोई सुभाउ कछु तुलसीके मनको।।

(78)

ईसु न, गनेसु न, दिनेसु न, धनेसु न,
सुरेसु ,सुर, गौरि, गिरापति नहि जपने।

तुम्हरेई नामको भरोसो भव तरिबेको,
बैठें -उठें , जागत-बागत , सोएँ, सपने।।

तुलसी है बावरो सो रावरोई रावरी सौं,
रावरेऊ जानि जियँ कीजिए जु अपने।

जानकीमन मेरे! रावरें बदनु फेरें,
ठाउँ न समाउँ कहाँ, सकल निरपने।।