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इतिहास / नरेश मेहन

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मैं
आज के
भ्रष्टाचार
अनैकिता
दोगलेपन
भाई-भतीजावाद
और
भेदभाव का हल
इतिहास में
ढूंढना चाहता था।
इसी के निमित
मैंने टटोला इतिहास
मुझे कहीं भी
राहत नही मिली।
इतिहास के पृष्ठों पर
पृष्ठ-दर-पृष्ठ
भरा पड़ा था
ऐसा ही सब कुछ।
जहां
अहित्या अपने पथराये बदन को
लिए बैठी थी
एकलव्य के हाथ में
कटा अगूंठा था
गांधारी बैठी थी
आंखों पर पट्टी बांधे
कर्ण बैठा था
सवालों की भट्टी सुलगाए
अन्धे धृतराष्ट्र
पुत्र मोह में
उलझे पड़े थे
और
मजबूर किया जा रहा था
त्याग के लिए
महाबलिष्ठ गंगापुत्र को।
मैं इतिहास से क्या सीखूं
समझ नहीं पा रहा।
अपने ही संगों से
जुए में हारने वाला
युधिष्ठर बनना भी
अब तो
रास नहीं आ रहा।
अब तो
नया कुछ करना होगा
भरना होगा पौरूष
इतिहास में कुछ