Last modified on 8 मई 2011, at 21:18

राष्ट्रीय शोक / नरेश मेहन

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:18, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश मेहन |संग्रह=पेड़ का दुख / नरेश मेहन }} {{KKCatKavita}} <…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक थानेदार ने
डाला था
एक अबला की चोली में हाथ
और
सुलाया था
अपनी ही मां के बदन पर
उसके जवान बेटे को
मगर
उस दिन
दफ्तर मे न छुट्टी थी
न नियंताओं को चिंता।
मैं लाख चाहकर भी
नहीं मना गया
राष्ट्रीय शोक।