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रफ़्तार / नरेश अग्रवाल

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लापरवाही से सख्त नफरत रही मुझे
उतनी ही नफरत लापरवाह लोगों से
और कुछ-कुछ कामों में
मैं भी था बेहद लापरवाह
लेकिन उतना ही सख्त
जब आ जाते थे महत्वपूर्ण काम सिर पर
होती थी परवाह, थोड़ी सी भी आँच न आये मुझ पर
जरा-सी बैठी धूल पर भी
उगलने लगता था आग मैं
चाहिए था मुझे सब कुछ साफ-सुथरा
कसा हुआ पहिए की तरह
और जिन्दगी को देखना चाहता था
दौड़ते हुए इसी तरह
कभी रफ्तार मुझमें कम होती थी, कभी अधिक
लेकिन बढ़ तो रहा था मैं
एक ही लय में, एक दिशा में ।