Last modified on 8 मई 2011, at 22:20

आशा में / नरेश अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=नए घर में प्रवेश / नरेश अग्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कितने-कितने दिन निकल गये
इंतजार में
कभी न पहुँचे सुनहरे संसार में
हर दिन आता है और जाता है
थोड़ा सा हाथ छोड़
खिसक जाता है
हम थोड़े से उदासी से भरे
थके-थके से सो जाते हैं
लम्बी चादर में घुसकर
सुबह नया कुछ होने की आशा में।