Last modified on 8 मई 2011, at 22:36

अकेला आदमी / नरेश अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:36, 8 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=नए घर में प्रवेश / नरेश अग्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वो अकेला आदमी
किसी भीड़ में शामिल नहीं था
किसी के सुख-दुख में भी नहीं,
वो अकेला था
जैसे किसी भवन पर उगा हुआ
बरगद का पेड़
अपनी जड़ें खुद ढूँढ़ता हुआ
सूखी दीवारों पर जीता हुआ
यहाँ भी जीवन है
संघर्ष कर जीने का सुख
यह किसी को छाया नहीं दे सकता
न ही कोई फल
लेकिन थोड़-सी
हरियाली जरूर ।