वर्षा हर कोने को भिगो गई मेरी उदासी काली स्याही-सी फैलती है मेरे ऊपर मुझ पर अब बूँदों की चोटों का कोई असर नहीं होता न लहरों के थपेड़ों का स्मृतियों के गुच्छे सिर पर झूलते हैं मेरे मर्म की कचोट का अंग-अंग टूटता है