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छत / नरेश अग्रवाल

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इन्हें भी चाव है स्थिरता का
और शौक कि लोग आयें बैठें-टहलें उसमें कुछ देर
उपयोग किया जाए उसका अच्छी तरह से।
नीचे भी दीवारों से घिरी खोखली नहीं है यह
क्षमता है इसमें सब कुछ समा लेने की
चाहे बिस्तर, मेज या रसोई का सामान
और कैसी भी छत हो इस दुनिया की
अपने ऊपर धूप सहती है
और नीचे देती है छांव,
अपनी आखिरी उम्र तक
तथा जिस दिन उजड़ती है यह
उस दिन महसूस होता है
कितना बड़ा आकाश ढ़ोती थी
यह अपने सर पर।