Last modified on 9 मई 2011, at 18:19

कीड़े / नरेश अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:19, 9 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश अग्रवाल |संग्रह=चित्रकार / नरेश अग्रवाल }} {{…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब कीड़े घुस जाएं फल में
क्षीण हो जाता है उसका मूल्य
और जो मूल्यहीन है
फेंक दिया जाता है बाजार में।
हमने देर लगा दी
नष्ट होते हुए को देखने में
नाव में कब सुराख हुआ
मालूम ही नहीं पड़ा।
अपनी चलनी को बचाकर रखना है
तभी घुलेगी आटे की मिठास जीभ पर
जख्म हुए तो पांव में वेदना की चुभन
और निहायत जरूरी है
लोहे के बक्से तक को मजबूत रखना
मधुमक्खी अपने डंक लेकर हमेशा सावधान है
सावधान है वह भीड़
जो बार-बार तालियां बजा रही
लेकिन उतने सावधान नहीं
इसे सुनने वाले लोग
कीड़े अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ेंगे।