मैंने काग़ज़ पर कलम रखा और शब्द ग़ायब हो गए चले गए कहीं तब मैंने छोड़ दिया उन्हें उनकी इच्छा पर
जब सवेरे अख़बार उठाया तो एक शब्द को उसमें छिपा पाया कुछ शब्द सुनाई दिए सेटलाइट चैनल पर और कुछ मिले समकालीन पत्रिकाओं में
वे फिसल गए मेरे हाथ से जब शाम को मैंने उन्हें पकड़ने की कोशिश की
पर जब बच्चों को पढ़ाने बैठा तो वे फिर झाँकने लगे शब्दकोश से निकलकर अपने नए और विचित्र अर्थों के साथ ।
अनुवाद : अनिल जनविजय </poem>