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वलय / किरण अग्रवाल

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उसने कहा - वापस लौट जाओ
मैंने कहा - नहीं लौटूंगी
उसने कहा - ठोकर खाओगी
मैंने कहा - तैयार हूँ
वह चुप हो गया
मैं बोलती रही
वह वलय में खो गया
मैं उसे ढूँढ़ती रही
और एक दिन मैंने पाया
कि वह मेरे भीतर-बाहर चारों ओर है
व्याप्त है हर धड़कन में
छूता है मुझे
बतियाता है मुझसे
मेरा सबसे अधिक अपना है।