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माँ / नीलेश रघुवंशी

माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद

दिखती है जब कोई औरत ।


घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर

हाथों में डलिया लिए


आँचल से ढँके अपना सर

माँ मुझे तेरी याद आ जाती है ।


मेरी माँ की तरह

ओ स्त्री


उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है

क्यों, आख़िर क्यों ?


क्य पक्षियों का कलरव

झूठमूठ ही बहलाता है हमें ?