अपने पहले संग्रह गर दादी की कोई खबर आए (1993) के साथ शहंशाह आलम ने समकालीन हिंदी कविता के उर्वर प्रदेश में दस्तक दी थी। फिर दो साल बाद अभी शेष है पृथ्वी-राग (1995) के साथ वे उपस्थित हुए। इसके बाद एक लंबे अंतराल के बाद उनका नया संग्रह अच्छे दिनों में ऊंटनियों का कोरस (2009) प्रकाशित हुआ है।
कविता के अतिरिक्त कला एवं रेखांकन में भी इनकी गहरी रुचि है, तथा इनके रेखांकन देश की लगभग सभी स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।