Last modified on 16 मई 2011, at 14:17

हवा से करार / सूरज

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 16 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरज |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> दूरियों से मुझे हल्का ग…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दूरियों से मुझे हल्का गुस्सा है ।
तुम ना हो तो दूरी का क्या,
होना । और न होना


मैं गाता हूँ प्रेम का सिनेमाई, पर जानलेवा गीत
और ये दूरी है जो तुम्हे मेरी चुप्पी बता आती है

ऐसा करो मेरी जान, तुम हवाओं पर दौड़ती हुई
चली आओ
मुझसे मिल जाओ
नहीं, ऐसा नहीं, दूरियों से मैं घबराया नहीं
(परेशान ज़रूर हूँ)
बेताबी है, पर ऐसी जैसे सुलग रहा हो कोई
चेहरा
चूल्हा
कान की लवें । बुझने की बात ही क्या?

तुम जिस गति से आओगी
तुम जिस गति से ‘मुझसे’ मिलने आओगी
मुझे मालूम है
पृथ्वी को भी मालूम है

पृथ्वी तुम्हे भरपूर मदद करेगी / तुम जहाँ पैर रखोगी ज़मीन ढीली हो जाएगी / तुरंत के पूरे किए प्रेम के बाद के जोड़े की तरह / फिर भी दूरी तो दूरी है / चोट आएगी / तुम्हारे पैरों से निकला एक बूँद रक्त पृथ्वी की सारी ख़ामोशी मिटा देगा / पृथ्वी उदास हो जाएगी / उसके झरने, फूल, बारिश, तुमसे कम ऊँचे पहाड़, तुमसे कम गहरे समुद्र उदास हो जाएँगे

मैने हवाओं के ड्राईवर से बात चला रखी है
वो तुम्हे ख़यालों के ख़ूबसूरत सूटकेस की तरह ले आएँगे

यदि कर सका मैं अग्रिम-भुगतान
हवा भेजती रहेगी मुझे पल-प्रतिपल तुम्हारी
बेजोड़ परछाईंयों के रंगीन लिफ़ाफ़े ।