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भेड़िया मैं / सूरज

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मिसालों की ज़रूरत,
क़िस्सों की ख़ुराक
और अपने
अपराधों को श्लील दर्ज़ करने के
लिये सभ्यता ने तुक्के पर ही
भेड़िये को बतौर खल-पात्र चुना

इंसान की रुहानी भूख के लिए
घृणित क़िस्सों का किरदार बना
भेड़िया, जान न पाया अपना
अपराध, जबकि यह बताने में
नही है किसी क्षमा की दरकार
कि शिकार कौन नही करता

बेदोष, मूक भेड़िए की लाचारी का
बहाना बनाते रहें अपनी आत्माओं
के सौदागर यह जान लें कि शेर
और नेवले शिकारी हों या इंसान,
तरीका भेड़िए से अलग नही होता

वे हम थे जिनने शेर और भालू
की ऊँची बिरादरी के आगे टेके
घुटने, माथा झुकाया और उनकी
प्रतिष्ठा में फूँकने के लिये प्राण
भेड़िये का बेजा इस्तेमाल किया
उसे गुनहगार बनाया, जंगली
जलसों से उसे इतनी दूर रखा
जिससे बना रहे उसके मन में
दूरी का बेबस एहसास, लगातार

भेड़िये की गिनती फ़िक्र का विषय
नहीं रही कभी, उसकी मृत्यु पर ढोल
और ताशे हमने ही बजाए

उसकी उदासी पर फिकरे कसे गए
(चुप रहने वालों को कहा गया घातकी)
अपने अपराधों के लिए मुहावरेदार साथी
बनाया भेड़िये को सभ्य-मानव ने

इंसानों से छला गया यह जीव सदमें में
रहा होगा सदियों तक, सर्वाधिक बुद्धिमान
प्रजाति द्वारा दिए गए धोखे की नहीं थी
ज़रूरत, उसे अलग-थलग करने के लिए
आविष्कृत हुए किस्म-किस्म की हँसी,
ख़ौफ़ और शब्दों के हथियार

हार नही मानी भेड़िए ने जिसके पास
जीते चले जाने के सिवा नही था कोई
दूसरा या तीसरा रास्ता

इतिहास के सबसे निर्मम और मार्मिक
एकांत में जीवित इस जीव ने साधा
सदियों लम्बी अपनी उदासी को, हम
रोने की उसकी सदिच्छा को जान भी
नही पाए

इतिहास के निर्माण में शामिल और
उसी इतिहास से बहिष्कृत भेड़िया
कभी नहीं रोता अपने निचाट
अकेलेपन पर

एक पल के लिए भी नहीं ।