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दुनिया / रेशमा हिंगोरानी

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न चाक रिश्तों पे पैवंद लगाती दुनिया,
बस अपने बन्दों पर ही बंद लगाती दुनिया!
जुनूनो-इश्क़ में न फ़र्क समझती शायद,
तभी दीवानों को दीवाना बताती दुनिया!

(चाक - फटा हुआ; पैवंद - रफ़ू; जुनूनो-इश्क़ - पागलपन और मुहोब्बत; दीवाना - मस्त को भी कहते हैं और पागल को भी!)

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कहे उड़ जाने को, रखे भी है कफस में उसे,
रज़ा सैय्याद की बुलबुल समझ न पाई कभी!

(क़फ़स - पिंजरा; रज़ा - मर्ज़ी; सैय्याद - पंछियों को कैद रखने वाला)

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आहे-नीमक़श भी ज़ेरे-लब निकले,
जहाँ इलज़ाम लफ्फाज़ी का लगे!

(आहे-नीमक़श - आधी खिची हुई आह; ज़ेरे-लब - दबी आवाज़ में; लफ्फाज़ी - बहुत बोलने वाला)

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मुसाफहा तो उदू से कर लें,
क़ुबा-ए-दोस्ती उतारे ज़रा!

(मुसाफहा - हाथ मिलाना; उदू - दुश्मन; क़ुबा-ए-दोस्ती - दोस्ती का चोगा, लिबास;)

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नमक-हरामों की बस्ती से कल ही लौटे हैं,
निभाने वाले तो, ज़ाहिर है, अजनबी से लगें!

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समझ रहा है ज़माना फ़ाकामस्ती जिसे,
उसे मजबूरी-ए-हालात कहा करते हैं !

(फ़ाकामस्ती - बहुत कम होने में भी तसल्ली; मजबूरी-ए-हालात - हालात की मजबूरी)

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सोए हुए ख़्वाबों की तो ताबीर कर भी दें,
जागे हुए इंसानों को समझाए मगर कौन?

(ताबीर - स्वप्न-फल बताना)

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तुम वाकिफ़ हो तंज़ो-ताना-ए-ज़माने से,
वो क्यों गँवाएगा मौक़े तुम्हें दुखाने के?

(तंज़ो-ताना-ए-ज़माने - लोगों के तीखे लफ्ज़ और ताने)

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