लुभा गया कोई जाना सा अजनबी मुझको…
मेरी सूखी हुई कलम में सियाही भरने,
मेरी बेजान सी नब्जों को जाँ-फिज़ा<ref>जान डाल देना / तरो-ताज़ा कर देना</ref> करने,
कौन है,
कौन है तू,
अजनबी,
पता तो बता?
मेरी यादों के कटघरे<ref>कैद</ref> में तू मुज्रिम भी नहीं,
शरीक़े-ज़िंदगी<ref>जिंदगी भर का साथी</ref>, न कोई हमसफ़र<ref>साथ चलने वाला</ref> मेरा!
कौन तू अजनबी,
कहाँ से चला आया है?
मुझे पेहचानता है,
जानता नहीं है मगर!
कहाँ मिला था,
कब मिला था,
मुझे याद नहीं!
हाँ, एक धुंदला-सा,
साया जो हुआ करता था…
कभी नज़र तो न आया,
मगर छुपा भी न था,
दूर, जो दूर,
कहीं दूर रहा करता था...
अभी यहाँ, कभी वहाँ,
कहीं तू ही तो न था?
शब्दार्थ
<references/>