रचनाकारः विष्णु खरे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
आप जो सोच रहे हैं वही सही है
मैं जो सोचना चाहता हूँ वह ग़लत है
सामने से आपका सर्वस्म्मत व्यवस्थाएँ देना सही है
पिछली कतारों में जो मेरी छिछोरी 'क्यों' है वह ग़लत है
मेरी वज़ह से आपको असुविधा है यह सही है
हर खेल बिगाड़ने की मेरी ग़ैरज़िम्मेदार हरक़त ग़लत है
अँधियारी गोल मेज़ के सामने मुझे पेश किया जाना सही है
रोश्नी में चेहरे देखने की मेरी दरख़्वास्त ग़लत है
आपने जो सजा तजवीज़ की है सही है
मेरा यह इक़बाल भी चूंकि चालाकी-भरा है ग़लत है
आपने जो किया है वह मानवीय प्रबन्ध सही है
दीवार की ओर पीठ करने का मेरा ही तरीका ग़लत है
उन्हें इशारे के पहले मेरी एक ख़्वाहिश की मंज़ूरी सही है
मैंने जो इस वक़्त भी हँस लेना चाहा है ग़लत है