Last modified on 20 मई 2011, at 09:41

शब्द-1 / अरविन्द अवस्थी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:41, 20 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द अवस्थी }} {{KKCatKavita}} <poem> पत्थर हैं जो …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

          पत्थर हैं
           जो घिस-घिस कर
नदी की धार के साथ
हो जाते हैं
            सुन्दर और चिकने
शब्द बादल हैं
जो भावनाओं की भाप बन
फैल जाते हैं
अंतरिक्ष में
शब्द धूप हैं
जो माटी और पानी से मिल
रचते हैं
एक नई पौध
शब्द हवा हैं
जो ढोकर यहाँ की ख़ुशबू
पहुँचा देते हैं वहाँ
शब्द आकाश हैं
जो अर्थ के फैलाव में
ढक लेते हैं
सारी दुनिया
शब्द स्वतंत्रता के पर्याय हैं
जो क़ैद करके
नहीं रखे जा सकते
किसी पिंजरे में ।