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आवारा लड़के / रमेश नीलकमल

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आवारा लड़के

केवल लकीर खींचते हैं अपनी

आवारा लड़के

केवल लकीर पीटते हैं अपनी

इसी खींचने और पीटने में

वे कोई लकीर नहीं बना पाते

जो वे बनाते

तो होती एक लम्बी लकीर

सामने की लकीर से लम्बी

उसे

छोटी बनाती हुई।

आवारा लड़के

आवारा बादलों की तरह भी नहीं होते

कि जब कभी

जहां कहीं बरस जाएं

और चुप हो जाएं

आवारा लड़के

उठा लेते हैं सर पर आसमान

अपने होने को

सच साबित करने के लिए

जबकि यह तो सच ही है

कि होते हैं

लड़के आवारे भी।

आवारा लड़के

खुद को छोटा नहीं मानते

नहीं मानते कन्फ्यूसियस का कहना

कि विनम्र होना एक बेशकीमती हुनर है

विनम्र होना छोटा होना नहीं है

विनम्र होना खोटा होना भी नहीं है

विनम्र होना

उगाना है दूसरों की नजरों में

अपने बड़े होने का अहसास

पर आवारा लड़के/यह सब कुछ नहीं मानते

यह सब कुछ नहीं जानते

समय का परिहास कि

वे यह सब कुछ न मानते हुए भी

न कुछ जानते हुए भी

बड़े होते रहते हैं

आवारा लड़के बड़े होते रहते हैं

चिकने घड़े होते रहते हैं

आवारा लड़के/कोई भली सीख

अपने पास ठहरने नहीं देते।

अब आपको यह कौन बताए कि

बड़े होने पर/आवारा लड़के

इस कदर लजाते हैं कि

आवारा लड़कों को भी

आवारा लड़के नहीं कह पाते।