हर रोज़ सूर्य होता है अस्त
पस्त हो चुके आदमी में
अब इसे जानने की
कोई उत्सुकता नहीं
अकाल जीवन का आधार बन गया है
रोज़ होती मौत
सरकारी आँकड़ों को
सँवारने का साधन है कम्प्यूटर
इधर भूकम्प की त्रासदी है
और उधर अकाल की
प्रकोप प्राकृतिक है
यह सीधे-सीधे
आदमी होने / बनने के
अधिकार पर प्रश्न है ।
तभी अकाल क्षेत्रा से गुज़रते हुए
अनाज से लदे ट्रकों की
गंध हवा में तैरती है
यह अकाल पीड़ित आदमी की
श्वास परीक्षा है और
ढाँचे में तब्दील होते वजूद की
अग्नि-परीक्षा
ख़बर बनती है
एक माह से भूखे व्यक्ति की
रसोई-गन्ध् से मौत
सरकार पूछती है, मर्ज़ क्या है ?
प्रजा पूछती है, फर्ज़ क्या है ?