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आदमी और देश / केशव

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सरहद के आर-पार
देश होते हैं
आदमी
सरहद पर

आदमी
देश के लिए लड़ता है
आदमी से
देश के लिए
आदमी
बस एक बंदूक होता है

आदमी के कंधे पर होती है
आदमी की आज़ादी
देश के कंधे पर
आदमी का कब्रिस्तान होता है

आदमी
सैनिक हैं
देश की हिफाज़त के लिए
देश कुख़्यात हैं
अदावत के लिए
गोली के सामने
देश नहीं
आदमी होता है
फिर भी
देश बड़ा
आदमी छोटा
होता है

आदमी पूछता है सवाल
भीतर बैठे पहरुए से
देश
कहाँ है
कहाँ है
कहाँ है
सरहद से आती
संगीन की नोक से बिंधी आवाज़
यहाँ है
यहाँ है
यहाँ है।