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धूप / नवनीत पाण्डे

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धूप सहृदयी
सह-चारिणी है
धूप ने हमेशा
अपनी तपन से मुझे
और निखारा है
आओ....!
धूप से कतराना नहीं
निखरना सीखें
निखार भी ऎसा
जिसमें किसी छाया की
छाया न हो
ऊपर-नीचे, आगे-पीछे
चारों ओर धूप हो
बस! धूप ही धूप हो