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मैं / नवनीत पाण्डे

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मैं कर सकता हूं
अपनी मुठ्ठी में बंद
आग भी, पानी भी
नहीं होता भयभीत
झुलसने या टपकने से
क्योंकि मुझे पता है
हर झुलस में
कहीं छुपा है एक टपका
और हर टपके में
भरी है एक झुलस