Last modified on 21 मई 2011, at 04:31

बाहर / नवनीत पाण्डे

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:31, 21 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवनीत पाण्डे |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem>अगर रखोगे खुले…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अगर रखोगे खुले हमेशा
दरवाज़े और खिड़कियां
कैसे बचा पाओगे गर्द से धुंधलाता
घर का आईना
बच्चा अंगुली पकड़कर
आना चाहता है घर से बाहर
तुम्हारे ही साथ पहली बार
क्या तुम दिखा सकते हो इसे?
पूरी ईमानदारी से
जैसा है तुम्हारा बाहर
पहली बार