सुनो सभासद !
आदिम युग से हम लाए हैं नदी दुबारा
बाहर निकलो
आहट सुनो बह रहे जल की
भीग रहीं, देखो
जटाएँ बूढ़े बरगद की
उधर घाट से
देख रहा है ख़ुश होकर इक बच्चा प्यारा
इधर हमारी पगडंडी पर
जुगनू लौटे
तुम पहने बैठे हो अब भी
वही मुखौटे
जिन्हें धारकर
तुम लाए थे सदियों पहले जलता पारा
उन्हीं दिनों यह नदी
अचानक ही सूखी थी
हमने टेरा
सिर्फ नेह की यह भूखी थी
नदी-किनारे
साधु लौटा - साध रहा है फिर इकतारा