Last modified on 24 मई 2011, at 20:10

जो पत्थर बोलता / राकेश प्रियदर्शी

योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:10, 24 मई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जो पत्थर बोलता
तो नहीं गूंजती
आकाश तक चीखें

नहीं होता कोई पैमाना
ऊँचाई और गहराई के बीच,
नहीं जलती अयोध्या
और न टूटती बाबरी मस्जिद

जो पत्थर बोलता
तो नहीं मरती संवेदना
जीवित रहता प्यार
मौत के बाद भी सदियों तक

जो पत्थर बोलता
तो नहीं होती आत्महत्याएं
आर्थिक बदहाली व भूख के कारण

जो पत्थर बोलता
तो नहीं बढ़ता आतंकवाद,
नहीं जलती सारी दुनिया
धू-धू कर नुफरत की आग में

जो पत्थर बोलता
तो हमारा और तुम्हारा
अलग-अलग नहीं होता धर्म