सम्बंध / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:19, 25 मई 2011 का अवतरण

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झुलस रहा है मेरे जिस्म का कोना-कोना
रूह को आग लग गई जैसे
कुछ दिनों से दिन-रात मेरी आंखों में
कोई तकलीफ बह रह रही है धीरे-धीरे
सारे सम्बन्ध पक रहे हैं अभी
मुझको इतनी-सी फ़िक्र रहती है
अलग न हो जाए हर्फ़ से कोई नुक्ता
ख़त लिफाफे में गर रहे तो अच्छा है ...

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