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सुख / हरीश करमचंदाणी

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पेडों पर उगती थी टॉफियाँ
फंव्वारे उंडेलते थे आइसक्रीम
जिन्हें मिल बाँट कहते तुम
नहीं ही भूलते थे
मोती काका के कालू को भी

पृथ्वी पर उपलब्ध
सुख सारा पाने की कोशिश में
तुमने खो डाला
साझा सुन्दर सपना
कितना अपना

सच बताना
तुम जानते तो हो ना
सुख क्या है