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बहुत पास / हरीश करमचंदाणी

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हर तारा चमकता हैं
अँधेरे को चीरती हैं रोशनी
अनगिनत आँखों तक पहुँचती हैं
हर तारा कितना अकेला हैं
मगर बेचारा नहीं कोई
कितना सुन्दर
आँखों का तारा
हर तारा
कितना प्यारा