Last modified on 26 मई 2011, at 03:27

सार / हरीश करमचंदाणी

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:27, 26 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>फल की चिंता नहीं की चखते रहे हमेशा दूसरे रहा कर्मवत सदा वह तो मै…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फल की चिंता नहीं की
चखते रहे हमेशा दूसरे
रहा कर्मवत सदा वह तो
मैंने पूछा
कयूँ ?
किसलिए ?
वह चुप रहा और अविचलित भी
उसके मौन में बाँच ली मैंने
पूरी गीता