अच्छी थी दहलीज की परम्परा,
मर्यादा में बंधी बनिताएं,
सुरक्षित तो थीं।
जब-जब दहलीज का उलंघन हुआ,
परिणाम भयंकर हुए,
काश! सीता ने,
'लक्ष्मण रेखा' रूपी दहलीज को,
न लांघा होता तो?
राम-रावण युद्ध न होता,
और स्वयं सीता को,
अग्नि-परीक्षा न देनी पड़ती,
और अपने ही प्रिय से,
उन्हें वनवास भी न मिलता॥