Last modified on 27 जून 2007, at 23:06

फूले-फूले पलाश / नचिकेता


फूले फूल पलाश कि सपने पर फैलाए रे


फिर मौसम के लाल अधर से

मुस्कानों की झींसी बरसे

आमों के मंजर की खुशबू पवन चुराए रे


पकड़ी के टूसे पतराए

फूल नए टेसू में आए

देवदार-साखू के वन लगते महुआये रे


धरती लगा महावर हुलसी

ठुमक रही चौरे पर तुलसी

हरी घास की हरी चुनरिया सौ बल खाए रे


धूप फसल का तन सहलाए

मन का गोपन भेद बताए

पेड़ों की फुनगी पर तबला हवा बजाए रे


वंशी-मादल के स्वर फूटे

गाँव-शहर के अंतर टूटे

भेद-भाव की शातिर दुनिया इसे न भाए रे।