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खुले नहीं दरवाज़े / नचिकेता


खुले नहीं दरवाज़े

बाहर कब तक

शांत रहूँ


घर के अंदर

तनिक नहीं हलचल है

आहट है

धड़कन है

साँसें हैं

साँसों की गरमाहट है

होठों की खामोशी का क्यों

तीखा दंश सहूँ


घर के बाहर धूल

धुआँ, बदबू, सन्नाटा है

कसक रहा तलवे में चुभकर

टूटा काँटा है

किस ज़बान से

इन दुर्घटनाओं की व्यथा

कहूँ


नीम-निबौरी झरी

गीत कोयल का मौन हुआ

क्रुद्ध ततैये जैसा डंक

मारती है पछुआ

ज़हरीली है नदी

धार में

कितना दूर बहूँ