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संबंध गुनगुने / माया मृग

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संबंधों की गरमाहट में
धीरे-धीरे
ठण्डे दिमाग से-सोचने की
ठण्डाई में घुलती चली गई।
भविष्य और सम्भावनाओं का
वर्तमानी परिणाम
घेरता चला गया।

धीरे-धीरे
उसकी पीठ पर
गर्दन के ठीक नीचे
एक बड़ा छेद हो गया।
छेद के किनारों की मिट्टी
भुरभुरी थी, भुरती रही-भुरती रही
कि जैसे कोई
सोचने के बहाने
हाथों को गर्दन पर लपेटे
... और दिमाग में हाथ डालकर
नये से नये तर्क ढूंढ लाये।

तर्क कि जिनमें
संवेदनाओं का स्पर्श नहीं,
बहस दर बहस के
इकतरफा निष्कर्ष हों।
यूं चुपचाप आस्थायें बदल गईं।
भाप कब ठण्डी हुई
अहसास तक न हुआ
हवा खुश्क है और
मौसम हमेशा की तरह।

कि अब बहुत देर तक
हवा एक सी रहेगी जिसमें
संवेदनाओं के साथ
जिया नहीं जा सकता।

ना ठण्डे-ना गरम
संबंध गुनगुने हो गये हैं
हाँ, कि
संबंध गुनगुने हो गये हैं।