'मित्र'
मात्र ध्वनि नहीं,
मात्र शब्द नहीं
अर्थ है
और अर्थ भी नहीं
भावार्थ है ।
जिसे पढ़ा नहीं जा सकता
सुना नहीं जा सकता
महसूस भर किया जा सकता है ।
क्या पूजा की घंटियाँ मात्र ध्वनि हैं?
क्या रोली मात्र रंग है?
नहीं
अंशों में बँटी होकर भी
एक सम्पूर्णत्व है
जो सार्थक करती है
हमारे अस्तित्व को ।
अंशों का सारांश साथ लिए
कल की तलाश
चलती रहती है
कि ताकि,
पुनः दें सकें तारों में संगीत
पुनः भर सकें चित्रों में रंग
पुनः पा सकें जुड़ने की संजीवनी ।
इसीलिए मित्र
'मित्र' मात्र ध्वनि नहीं,
मात्र शब्द नहीं
अर्थ है
और अर्थ भी नहीं
भावार्थ है ।