Last modified on 27 जून 2007, at 23:47

बेहद अपनी / नचिकेता

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 27 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नचिकेता }} Category:गीत जब से देखा तुमको भूल नहीं पाया हूँ ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जब से

देखा तुमको

भूल नहीं पाया हूँ


जबसे देखा

मुझे लगी बेहद अपनी-सी

आंखों को पहचान दिलाती

भौं, पिपनी सी

एकाकीपन में भी

खुलकर

मुसकाया हूँ


तुम्हें देखकर ही

रंगों का अर्थ मिला है

मन के भीतर वनतुलसी का

बाग खिला है

खुशबू की

उठती तरंग-सा

लहराया हूँ


तुम्हें देखकर

दुनिया का मतलब जाना है

स्वाद, गंध, ध्वनि, रूप, छुअन को

पहचाना है

तृप्त हुआ

जीकर जीवन का

सरमाया हूँ