Last modified on 27 मई 2011, at 23:37

नाकाबाती छीं / बालकृष्ण गर्ग

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 27 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> सर्दी में थर-…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सर्दी में थर-थर,
गर्मी में लू-लू ।

तुम करते हा-हा,
हम करते हू-हू ।

मीठा-मीठा गप,
कड़वा-कड़वा थू ।

नाकाबाती छीं,
कानाबाती कू ।