Last modified on 1 जून 2011, at 10:05

तुम / अशोक कुमार शुक्ला

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:05, 1 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> क्या मालूम…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क्या
मालूम है तुम्हें
हवा कहाँ रहती है ?
शायद हर जगह
 
लेकिन दिखती नहीं
बस दस्तक देती है दरवाज़े पर
कभी हौले से
और कभी आँधी बनकर
 
दिखती नहीं
बस उसका अहसास होता है
जैसे अभी छूकर निकल गई हौले से
ख़ुशबूदार झोंके की तरह
या पेड़ की पत्तियों को सरसराकर
कोई इशारा दे गई जैसे
 
ठीक ऐसी ही हो तुम !
दिखती भी नहीं,
और पास से हटती भी नहीं ।