Last modified on 5 मार्च 2008, at 19:02

लौटना / विष्णु खरे

Sumitkumar kataria (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:02, 5 मार्च 2008 का अवतरण ()

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम क्यों लौटना चाहते हैं
स्मृतियों, जगहों और ऋतुओं में
जानते हुए कि लौटना एक ग़लत शब्द है-
जब हम लौटते हैं तो न हम वही होते हैं
और न रास्ते और वृक्ष और सूर्यास्त-
सब कुछ बदला हुआ होता है और चीज़ों का बदला हुआ होना
हमारी अँगुलियों पर अदृश्य शो-विन्डो के काँच-सा लगता है
और उस ओर रखे हुए स्वप्नों को छूना
एक मृगतृष्णा है

अनुभवों, स्पर्शों और वसन्त में लौटना
कितना हास्यास्पद है-फिर भी हर शख़्श कहीं न कहीं लौटता है
और लौटना एक यंत्रणा है
चेहरों और वस्तुओं पर पपड़ियाँ और एक त्रासद युग की खरोंच
देखकर अपनी सामूहिक पराजयों का स्मरण करते हुए
आईने के व्योमहीन आकाश में
एक चिड़िया लहूलुहान कोशिश करती है उस ओर के लिए
और एक ग़ैर-रूमानी समय में
हम लौटते हैं अपने-अपने प्रतिबिंबित एकांत में
वह प्राप्त करने के लिए
जो पहले भी वहाँ कहीं नहीं था