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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 61 से 70/पृष्ठ 2

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(62)
जो पै हौं मातु मते महँ ह्वैहौं |
तौ जननी !जगमें या मुखकी कहाँ कालिमा ध्वैहौं ?||

क्यों हौं आजु हौत सुचि सपथनि ?कौन मानिहै साँची? |
महिमा-मृगी कौन सुकृतीकी खल-बच-बिसिषन बाँची ?||

गहि न जाति रसना काहूकी, कहौ जाही जोइ सूझै |
दीनबन्धु कारुण्य-सिन्धु बिनु कौन हियेकी बूझै ?||

तुलसी रामबियोग बिषम-बिष-बिकल नारि-नर भारी |
भरत-सनेह-सुधा सीञ्चे सब भए तेहि समय सुखारी ||