Last modified on 5 जून 2011, at 14:35

गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 61 से 70/पृष्ठ 4

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:35, 5 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(64)
भरतजी का चित्रकूटको प्रस्थान

मेरो अवध धौं कहहु, कहा है |
करहु राज रघुराज-चरन तजि, लै लटि लोगु रहा है ||

धन्य मातु, हौं धन्य, लागि जेहि राज-समाज ढहा है |
तापर मोको प्रभु करि चाहत सब बिनु दहन दहा है ||

राम-सपथ, कोउ कछू कहै जनि, मैं दुख दुसह सहा है |
चित्रकूट चलिए सब मिलि, बलि, छमिए मोहि हहा है ||

यों कहि भोर भरत गिरिवरको मारग बूझि गहा है |
सकल सराहत, एक भरत जग जनमि सुलाहु लहा है ||

जानहिं सिय-रघुनाथ भरतको सील सनेह महा है |
कै तुलसी जाको राम-नामसों प्रेम-नेम निबहा है ||