ढलती हुई उम्र में
वह चढ़ाई पर था
समुद्र-तल से सात हज़ार चार सौ फीट
ऊँचाई पर,
सैलानियों के रेलमपेल में
शेरपा को कुछ और नहीं भाता,
न मिरिक झील का विस्तार
न बादल, न बारिश, न पहाड़
उसे क्रिप्टोनेरा जैपोनिका के
आकाश छूते दरख़्त भी नहीं लुभाते
उसे बस उतना पता है
कि उसके रास्ते में
बाँए हाथ की ओर खाई
और दाहिने हाथ की तरफ पहाड़ है
इन दोनों के बीच
एक रास्ता है जिस पर
उसे अभी और जाना है ।