Last modified on 10 जून 2011, at 09:26

माँ / नील कमल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:26, 10 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह=हाथ सुंदर लगते हैं / नील कमल }} {{KKCatKa…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रेमिका के लिए लेकर
माँ का कलेजा, जाते हुए
जब बेटा खाता था ठोकर

बोल उठता था कलेजा
बेटा, चोट तो नहीं आई,

तब से अब तक, दुनिया
बदल चुकी करवटें

प्रेमिका के दरवाज़े से
खाकर ठोकर, बेटा
लौटता है माँ के पास

माँ आश्वस्त होती है कि
लौटना है विश्वास की वापसी

विश्वास लेकिन छलता है
माँ-बेटा दोनों को
बीच में आता है बाज़ार

जिगर के टुकड़े का जिगर
अब चाहिए माँ को

हार जाते हैं जिगर वाले
जीत जाता है बाज़ार
चोट दोनों ही खाते हैं ।