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आँगन-1 / नील कमल

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ख़बर आई थी तार से
आँगन की पुरानी भीत
गिर चुकी थी

गाँव से बहुत दूर
आवाज़ सुनाई पड़ी
अरअरा कर गिरती हुई
माटी की भीत से, और
याद आये लड़कपन के दिन

आँगन में खेलते
एक दुर्बोध-सा खेल
(ओक्का बोक्का तीन तलोक्का
लउवा लाची चन्दन काठी......)
वे भीत से घिरे आँगन के
दिन थे, हालाँकि
पुरानी भीत के
अनिवार्यतः गिरने के गीत
तब भी गाया करती थी
एक वृद्धा आँगन में, और
जानते थे हम भी कि

नई भीत उठेगी फिर-फिर
और फिर-फिर गिरेगी पुरानी भीत

फिर भी भीत के गिरने की बात
से उदास थे हम,
उदास थे पेड़-पौधे,
चिड़िया, हवा, पानी,
बच्चे, जवान, बूढ़े
फैला हुआ था आँगन
आँगन खुल चुका था
और आँगन के बीच थे
कुछ लोग,
बिल्कुल निर्वसन ।