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स्पष्टीकरण / राजेन्द्र कुमार

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यह बात नहीं कि मैं जीवन से ऊब गया हूँ
बात यह है कि मैं जीवन में इतना डूब गया हूँ
कि मौत मुझे सतह पर नहीं पा सकती ।

हाँ, उसे मिल सकते हैं
                  मेरी उखड़ी हुई साँसों के बुलबुले
                  जो हैं इतने ज़्यादा चुलबुले
                  कि इन गहराइयों में भी
                  मुझसे लड़कर
                  भँवरों में पड़कर
                  जा ही धमकते हैं सीने पर सतह के

निःसन्देह मौत उन्हें पा सकती है
पर मुझे वह सतह पर नहीं पा सकती ।