Last modified on 12 जून 2011, at 22:56

हंसा / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 12 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=बेहतर दुनिया के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तू उस कस्बे की तरह है
जिस पर बर्बरों ने हमला बोल दिया है

तू अपने में सिमट जा
और सिमट जा हंसा

मोटे थुलथुल
माँसखोर गिद्ध
चीख़ रहे हैं तुम्हारे विरुद्ध

तू अकेला
और अकेला हो जा हंसा

अवसरवादी अपराधी
छिपकर आहट ले रहे हैं तुम्हारी

तू ख़ामोश
और ख़ामोश हो जा हंसा

एक दिन बोलेगी
बोलेगी ज़रूर तुम्हारी ख़ामोशी

तू अकेला नहीं जाएगा हंसा ।